Skip to main content

Combined use of surface and ground water for good farming





अच्छी खेती के लिए सतही और भूजल का संयुक्त उपयोग
भूजल का तातपर्य यह है की जो जल जमीन के निचली सतह में पाया जाता है। जैसा की हम जानते है, भारत दुनिया का सबसे ज्यादा भूजल उपयोग करने वाला देश है और यह ग्रामीण इलाकों में पेयजल का पच्चासी प्रतिशत आपूर्ति करता है। भारत देश में भूजल का सबसे ज्यादा उपयोग सिंचाई के लिए किया जाता है, जो की कृषि के लिए किए गये कुल सिंचाई पानी उपयोग का पच्चासी प्रतिशत है।

हमारे इस भारत देश में प्रकृति द्वारा प्राप्त सतह और भूजल प्रयाप्त मात्रा में उपस्थिस्थ है, जो की असमान रूप से पूरे देश में वितरित है। दिन व दिन, हमारे देश में सतह जल का आभाव होता जा रहा है और भूजल का कृषि के लिए उपयोग बढ़ता जा रहा है जो की हम्रारे देश की खेती के लिए बहुत बड़ा संकट बन सकता है।

आज हमारे देश का साठ प्रतिशत से ज्यादा कृषियोग भूमि भूजल से सिंचित किया जाता है जानकी केवल तीस प्रतिशत भूमि ही सतह जल से सिंचित किया जाता है। सतह जल की कमी और भूजल का कृषि की सिचाई के लिए बढती आवश्यकता हमारे इस भारत देश की भूजल के अच्छी गुणवत्ता को बरक़रार रखने के लिए सही नहीं है।

हमारे देश में विभिन्य कार्यक्षेत्र जैसे घरेलु पेयजल, उद्योग और कृषि में भूजल की बढती मांग को देखते हुए लगता है की भूजल का प्रबंधन जरूरी बनता जा रहा है। भूजल का अंधाधुन उपयोग भविष्य में जल की बहुत बड़ी समस्या बन सकती है। भूजल के विभिन्य कार्यक्षेत्र में बढ़ती मांग भूजल की गुणवत्ता के लिए बहुत बड़ा प्रश्न बनता जा रहा है।

अगर भूजल की इस बढ़ती मांग को समय से पहले कम नहीं किया गया तो यह भविस्य में इस बढ़ती जनसख्या के लिए बहुत बड़ा परेशानी बन जायेगा। भूजल का कृषि में बढ़ती मांग और सतह जल या बर्षा जल की कमी भूजल की गुणवत्ता ख़राब होने का बहुत बड़ा कारण है जो भविस्य में एक बहुत बड़ी समस्या उत्पन कर सकता है, इसलिए समय से पहले इसका समाधान जरूरी है।

भारतीय कृषि अनुशंधान परिषद् के एक रिपोर्ट के अनुसार पाया गया है की भारत की भूजल स्तर १-२ मीटर प्रति वर्ष की दर से घटती जा रही है। भूजल के उपयोग को कम करने के लिए सतह जल का संग्रह जरूरी है, ताकि संसाधन का उचित प्रबंधन हो सके और उसकी गुणवत्ता बरक़रार रखने में सहायक हो।

जैसा की हमलोग जानते है हमारे देश के बिभिन्य प्रांत में भूजल की समस्या भी उत्पन हो चुकी है जो की हमारे देश की खेती के अनुकूल नहीं है। हमारे देश में भूजल से सम्बंधित समस्या जो की कृषि को प्रभाबित करता है:

भूजल की गुणवत्ता में कमी के कारण:

नमक और अम्ल की उपलब्धता:
भूजल में नमक की बढ़ती उपलब्धता कृषि में सिंचाई के लिए सबसे बड़ी बाधा बनता जा रहा है, इस बढ़ती बाधा को रोकने के लिए भूजल का संयुग्मित उपयोग सबसे बड़ा उपचार होगा। जल की स्वछता बिभिन्न पैमानों में मापी जाती है जैसे विद्युत् चालकता और PH, अगर जल में विद्युत् चालकता की मात्रा 4 डेसी सीमेन प्रति सेंटीमीटर से ज्यादा और पह 8.5 से कम हो जाये तो जल छारीय कहलाता है।

जलाक्रांत क्षेत्र में बढ़ौतरी:

जलाक्रांत क्षेत्र में बढ़ौतरी के कारन कृषिनुमा भूमि बंजर होती जा रही है। इस क्षेत्र में बढ़ोतरी के कारन आज ग्रीनहाउस गैस की मात्रा में भी बढ़ौतरी हो रही है, जिससे पूरे देश की मौसम में बदलाव देखने को मिल रहा है। यह नामकिय क्षेत्र के विस्तार में भी बहुत बड़ा भूमिका निभाती है।

आर्सेनिक की बढ़ती मात्रा:

पश्चिम बंगाल के छिछला जलदायी भूजल स्तर में आर्सेनिक की बढ़ती मात्रा उस क्षेत्र की जनसख्या के लिए बहुत बड़ी समस्या है। आज के इस बढ़ती जनसख्या के दौर में आर्सेनिक की समस्या केबल बंगाल की ही समस्या नहीं है बल्कि ये पूरे देश की समस्या बनती जा रही है, जो देश की कृषि के लिए अच्छे पानी की उपलब्धता में सबसे बड़ा बाधक बनता जा रहा है।

स्वच्छ पानी में आर्सेनिक की मात्रा 0.05 मिली ग्राम प्रति लीटर की उपलब्धता कृषि की सिंचाई के लिए अनुकूल मन जाता है।

लोहे की बढ़ती मात्रा:

स्वच्छ पानी में आर्सेनिक की मात्रा 1.0 मिली ग्राम प्रति लीटर की उपलब्धता कृषि की सिंचाई के लिए अनुकूल मन जाता है।

फ्लोरिड की बढ़ती मात्रा: स्वच्छ पानी में आर्सेनिक की मात्रा 1.5 मिली ग्राम प्रति लीटर की उपलब्धता कृषि की सिंचाई के लिए अनुकूल मन जाता है।

नाइट्रेट की बढ़ती मात्रा:

भूजल में नाइट्रेट की मात्रा बहुत तेज गति से बढ़ती जा रही है, इसका मुख्य कारण कृषियोग क्षेत्र में खाद का अंधाधुन उपयोग और औद्योगिक क्षेत्र से जल का बहाव है। स्वच्छ पानी में आर्सेनिक की मात्रा 45 मिली ग्राम प्रति लीटर की उपलब्धता कृषि की सिंचाई के लिए अनुकूल माना जाता है।

भूजल संदूषण की रोकथाम के उपाय:




  • छारीय और अम्लीय भूजल को सतह जल के साथ मिलाकर कृषि के सिचाई के लिए उपयोग करना।
  • वर्षा के पानी को एकत्रित करके भूजल को संदूषित होने से बचाया जा सकता है।
  • सतह जल की उपलब्धता को बढाकर भूजल के दुरुपयोग को काम किया जा सकता है।
  • सूक्षम सिंचाई प्रणाली का उपयोग कर भूजल संदूषण को काम कर सकते है। यह सिंचाई प्रणाली सिंचाई की दक्षता को भी बढ़ने में मदद करता है।
  • सतह जल से सिंचित क्षेत्र को बढाकर और भूजल सिंचित क्षेत्र को घटाकर भूजल की समस्या को काम किया जा सकता है।
  • वृक्षारोपण भी भूजल संवहन में बहुत बड़ी भूमिका निभाती है, यह जल स्तर को बढ़ाने में बहुत मदगार साबित होता है।
  • भूजल के संयोजन के उपयोग से, हम नहरों में लगभग 50 प्रतिशत वाहन नुकसान को कम कर सकते हैं।
  • नदियों को जोड़ना का कार्यक्रम भूजल संवर्धन में सहायक होगा और इस कार्यक्रम के तहत सिंचितक्षेत्र में भी बढ़ोतरी होगी

  • संगयुग्मित उपयोग एक जल प्रबंधन साधन है जो ख़राब गुणबत्ता वाले भूजल का उपयोग सतह जल के साथ करके भूजल की सिंचाई दक्षता को बढ़ाता है। भूजल के संयोजन के उपयोग से, हम नहरों में लगभग 50 प्रतिशत वाहन नुकसान को कम कर सकते हैं। इसके उपयोग से हम सतह जल के नुकसान को पचास प्रतिशत तक काम कर सकते है और फसल की उत्पादन को भी बढ़ा सकते है।
    भारत सरकार के द्वारा प्रारम्भ की गयी योजना:
    • भू-जल और सतह जल के संरक्षण और प्रबंधन करने के लिए भारत सरकार के द्वारा बिभिन्न योजना प्रारम्भ की गयी है:
    • राष्ट्रीय भूजल प्रबंधन विकास योजना
    • प्रधान मंत्री कृषि सिंचाई योजना
    • प्रधान मंत्री फसल बिमा योजना
    • मिर्दा स्वास्थ्य कार्ड
    • राष्ट्रीय बागवानी मिशन
    • महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका गारण्टी योजना
    भू-जल का संयुग्मित उपयोग:
    भूजल का संयुग्मित उपयोग का तात्पर्य यह है की सतह जल और भूजल का बारी-बारी से अथवा मिलाकर, कृषि सिंचाई के लिए उपयोग करना है। इस प्रद्धति का मुख्य लक्ष्य भूजल और सतह जल की दक्षता को बढ़ाना है। आमतौर पर इस पद्धति का उपयोग दो कारणों के लिए किया जाता है, पहला सिंचाई के पानी की आपूर्ति में वृद्धि लाने के लिए, और दूसरा भू-जल की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए।

    इस प्रद्धति का इस्तेमाल किसी भी कम गुणवत्ता वाले भू-जल क्षेत्र में कर सकते है। इस पद्धति के अनुसार सतह और भूजल को विभिन्न अनुपात में मिलाते है। यह अनुपात का मतलब केबल यह होता है की कौन से अनुपात सिंचाई योग पानी के सभी पहलुओं से सन्दर्भ रखता है।
    इस विधि के तहत कम गुणवत्ता वाले भूजल की दक्षता को बढ़ा सकते है। यह प्रकिया पंजाब और हरियाणा में बहुत प्रचलित है क्युकी इस क्षेत्र में भूजल की गुणवत्ता बहुत ही दैयनीय है। इस विधि के अनुसार कृषि की उपज को बढ़ाया जा सकता है और साथ ही साथ यह देश की खाद्य सुरक्षा में भी सहयोग करेगा।

    Authors:
    पवन जीत1, प्रेम कुमार सुंदरम2, अकरम अहमद3, मृदुस्मिता देबनाथ4
    1,2,3,4 वैज्ञानिक
    भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना-800 014, बिहार


    comment here

    Popular posts from this blog

    भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 के प्रमुख प्रावधान

    भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 6 मार्च, 1934 को भारतीय रिज़र्व बैंक का गठन करने के लिए अधिनियमित किया गया था। यह कानून 1 अप्रैल, 1935 से शुरू हुआ । कुछ महत्वपूर्ण खंड नीचे सूचीबद्ध हैं: धारा 3:  रिजर्व बैंक की स्थापना और निगमन। धारा 4:  बैंक की पूंजी।   बैंक की पूंजी पांच करोड़ रुपये होगी। धारा 6:  कार्यालयों, शाखाओं और एजेंसियों की स्थापना धारा 8:  भारतीय रिजर्व बैंक के केंद्रीय बोर्ड की रचना धारा 17:  आरबीआई जो कारोबार कर सकता है धारा 20:  सरकारी व्यवसाय का लेन-देन करने के लिए बैंक की बाध्यता। धारा 21:  बैंक को भारत में सरकारी व्यवसाय का लेन-देन करने का अधिकार है। धारा 21 क:  समझौते पर राज्यों के सरकारी व्यवसाय का लेन-देन करने वाला बैंक। धारा 22:  बैंक नोट जारी करने का अधिकार। धारा 24: नोटों का विमुद्रीकरण।   (1) उप-धारा (2) के प्रावधानों के अधीन, बैंक नोट दो रुपये, पांच रुपये, दस रुपये, बीस रुपये, पचास रुपये, एक सौ रुपये, पांच सौ रुपये, एक हजार रुपये के मूल्यवर्ग के होंगे। , पांच हजार रुपये और दस हजार रु...

    Daily Current Affairs 18 December 2018

    Daily Current Affairs + PIB:18 December 2018 Paper 2: Topics Covered: Government policies and interventions for development in various sectors and issues arising out of their design and implementation. Flight and Maritime Connectivity Rules, 2018 What to study? For Prelims: Overview of the guidelines. For Mains: Significance and the need for guidelines and the in- flight connectivity. Context:  The government recently notified  Flight and  Maritime Connectivity Rules, 2018  thereby allowing phone calls and internet on flights and ship voyage within India’s territory. The guidelines: Who can provide?  The in-flight and maritime connectivity (IFMC) can be provided by a valid telecom licence holder in India through domestic and foreign satellites having the permission of the Department of Space. In case of using satellite system  for providing IFMC, the telegraph message shall be passed through the satellite gateway earth...

    As a visitor did, Place we have to visit arwal

    As a visitor did, Place we have to visit arwal Arwal is one of the 38 districts in the state of Bihar, India, and Arwal is the district's administrative headquarters. It used to be part of Jehanabad. Language to be spoken in Arawal The language spoken in Arawal is Magahi. Hydrology of Arawal Edit Arwal is Bihar 's only district in terms of quality and availability of water. Because underground water is completely free from impurities according to the survey carried out by experts. Water is mostly available at a much less profound level, this is why many households of arwal are using hand- pumps instead of motors and storage systems. Excellent transport, Son river and the great availability of water in Arwal can provide the conditions appropriate for establishing the industry. ECONOMY OF ARWAL The district economy is totally based on agriculture and there is no industry in this area. The main plants are paddy, wheat and pulse. While most of the ...